पाँखुरी
Friday, October 21, 2022
{३८७} हकीकत के फ़साने
खयालों के जमाने
हकीकत और फ़साने।
ज्यों बढ़ती परछाइयाँ
उम्र से हो रहे सयाने।
कहानी ज़िन्दगी की
पुराने और नये तराने।
खामोशी के सिलसिले
बुना करते सपने सुहाने।
हवा में खुमार बाकी है
अभी जिन्दा हैं वो दीवाने।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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