तुम कविता हो।
कविता तेरे होंठों की लाली
कविता तेरी चाल मतवाली
कविता तेरी मन्द मुस्कान
कविता जिस पर मैं कुर्बान
तुम सरिता हो।
तुम कविता हो।।
कविता तेरे नूपुर की रुनझुन
कविता तेरे मानस की गुन-गुन
कविता तेरा मुझसे रूठ जाना
पहले इठलाना फिर मान जाना
तुम रूप-गर्विता हो।
तुम कविता हो।।
कविता तेरी तिरछी नज़र है
चीर जाती जो मेरा जिगर है
ईश्वर की अद्भुत रचना हो
कवि की कोमल कल्पना हो
तुम देव-निर्मिता हो।
तुम कविता हूँ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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