पाँखुरी
Thursday, October 27, 2022
{३९४ } तुम पर है जाँ निसार
तुम पर है जाँ निसार
कर लो अब एतबार।
फिरता हूँ मैं भटकता
कब से हूँ मैं बेकरार।
तिशनगी रूह की मिटे
आ बन कर वो फुहार।
हो गई दर्द की इंतिहा
सुन ले दिल की पुकार।
जिंदा रहे मेरी मोहब्बत
खत्म कर मेरा इंतजार।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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