Friday, May 27, 2011

{ ३८ } मेरा दिल







हाले-दिल पूछकर, कर दिया आपने इलाजे-दिल,

जान कर इरादा आपका, मचल गया है मेरा दिल।


शाम ढले जोगन ने इन कानों मे मधुरस घोल दिया

मन-मंदिर बाँसुरि बाजे, देखो नाच रहा है मेरा दिल।


आते सर्दी-गर्मी, सावन-भादों, पतझड और बसन्त,

देख रंग-बिरंगे मौसम को मचल गया है मेरा दिल।


घनघोर घटा छाई सब ओर हरियाली ही हरियाली है,

बारिश करे अपने करतब, हिलोर गया है मेरा दिल।


जिसकी भीनी-भीनी खुश्बू से जानो-जिस्म महकते है,

ऐसा फ़ूल लिये फ़िरती हो, बेचैन हो रहा है मेरा दिल।


ये कैसी मस्त बहार लाये हो गुलशन मे मेरे ऐ बागबाँ,

रसभीनी मधुर मदन बयार मे मयूर सा नाचे मेरा दिल।।




.............................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल




Sunday, May 22, 2011

{ ३७ } रास आने लगा है







वो वीरान जुदाई का बागेवस्ल बनेगा
यादों मे आ के कोई ये बताने लगा है।

दूरी के दर्द से ज्यादा पहलू-ए-मौसम,
उसमे डूब जाने को दिल सताने लगा है।

अनजाने ही हुआ करते करिश्मे रूह के
गुमराहों को आपस मे मिलाने लगा है।

इस प्यार के फ़रिश्ते का कमाल देखिये
हुस्न खुद उसके नजदीक आने लगा है।

उसे मेरा करीब होना रास आने लगा है
सूरत मे फ़िर से रंगे-इश्क छाने लगा है॥


............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


Thursday, May 19, 2011

{ ३६ } मेघा बरसो रे






बरसो रे..

बरसो रे..

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


झूम - झूम के बरसो,

घूम - घूम के बरसो,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


अम्बर प्यासा,

धरती सूखी,

सूखी नदिया,

सूखे झरने सारे,

वन - उपवन में आग लगी है,

झुलसा है गिरिराज हिमालय,

औ' झुलसे अंगी सारे,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


चिडी, चिरैय्या औ" गौरय्या,

काग, कुरच बेहाल घूमते,

मुर्गाबी, हंस औ' सारस,

आसमान हैं तकते,


आओ मेघा आओ,

सबकी प्यास बुझाओ,

बरसो मेघा बरसो,

झूम - झूम के बरसो,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे ||



................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



Saturday, May 14, 2011

{ ३५ } गिला क्या है







मोहब्बत करने वाले तुम्हे पता क्या है,

तुम्हारी किस्मत मे रब ने लिखा क्या है।


बीत जायेगी सारी उम्र, न जान पायेगा,

होठो पर किसके, दुआ-बददुआ क्या है।


दर्द अपने दिल का काबू मे कर लेगा तू,

मुश्किल है जानना पलकों पे रुका क्या है।


चार पल किसी ने हंसकर साथ गुजारे नही,

और तुझको इस किस्मत से गिला क्या है।


सिर्फ़ गहरी तनहाइयो मे ही तो रहता है तू,

बता पाओगे राहत या सितम, मिला क्या है।



..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



Monday, May 2, 2011

{ ३४ } फ़ूल







मुझ पर फ़ूल बहुत मेहरबान है यारो,

फ़ूल सी ही मीठी मेरी जबान है यारो।


फ़ूल की महक सबसे येही कहती है,

उसकी खुश्बू ही तो पहचान है यारों।


सभी का दिल को सुकून मिल जाता,

अगर फ़ूल उसपर मेहरबान है यारों।


बात सीधी सी है और बहुत गहरी भी,

प्यार जतलाये फ़ूल सी जबान है यारों।



.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल